दंगों की आड़ में औरत की अस्मत को लूटा जाता है ; हम कुछ भी न कर पाते हैं ये सोच के सिर झुक जाता है ! |
जब सच्चाई को ट्रेक्टर से कुचला जाता है हम कुछ भी न कर पाते हैं ये सोच के सिर झुक जाता है ! |
सोती जनता को रातों में लाठी से पीटा जाता है ;
हम कुछ भी न कर पाते हैं ये सोच के सिर झुक जाता है !
जनता भूखी -नंगी बैठी और पार्क बनाया जाता है ;
हम कुछ भी न कर पाते हैं ये सोच के सिर झुक जाता है !
GOOGLE से साभार |
पैसे देकर अख़बारों में झूठा सच्चा छप जाता है ;
हम कुछ भी न कर पाते हैं ये सोच के सिर झुक जाता है !
शिखा कौशिक
2 टिप्पणियां:
सटीक लिखा है ...
विचारोत्तेजक रचना। हमारे समय की विसंगतियों को सामने रखती है।
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