माँ-बाप जिन बच्चों को नाज़ों से पालते ;
होकर बड़े क्यों वे उन्हें घर से निकलते ?
बचपन में जिनसे पूछकर करते थे सभी काम ;
होकर बड़े उन्ही में कमियां निकालते !
लाचार हैं;बेबस हैं;किसी काम के नहीं ;
कहकर ये बात जले पर नमक हो डालते !
अपने तो शौक करते हो शान से पूरे ;
माँ-बाप के हर काम को कल पर टालते !
माँ-बाप को ही दे दिया इतना बड़ा धोखा ;
जो उम्रभर रहे तुमको सँभालते !
शिखा कौशिक
5 टिप्पणियां:
aaj ke zamaane ka sach ....sundar evam saarthak prastuti ....
vastvikta ko bahut marmikta ke sath abhivyakt kiya hai.
nice.
SACHHAIE KO BAYAN KARTI KHOOBSURAT RACHNA
अपने मां बाप से दूर रहने को विवश जीवन के दर्द को फिर से कुदेर गयी आपकी मार्मिक सरल कविता
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