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शुक्रवार, 5 नवंबर 2010

short story-phool

सिमरन दो साल के बेटे विभु को लेकर जब से maiyke आई थी; उसका मन उचाट था.गगन से जरा सी बात पर बहस ने ही उसे यंहा आने के लिए विवश किया था.यूँ गगन और उसकी 'वैवाहिक रेल' पटरी पर ठीक गति से चल रही थी पर सिमरन के नौकरी की जिद karne पर गगन ने इस रेल में इतनी जोर क़ा ब्रेक लगाया क़ि यह पटरी पर से उतर गई और सिमरन विभु को लेकर मायके आ गयी.सिमरन अपने से निकली तो देखा विभु उस फूल क़ि तरह मुरझा गया था जिसे बगिया से तोड़कर बिना पानी दिए यूँ ही फेंक दिया गया हो.कई बार सिमरन ने मोबाईल उठाकर गगन को फोन मिलाना chahaपर नहीं मिला पाई ये सोचकर क़ि ''उसने क्यों नहीं मिलाया?' मम्मी-पापा व् छोटा भाई उसे समझाने क़ा प्रयास कर हार चुके थे. विभु ने ठीक से खाना भी नहीं खाया था बस पापा के पास ले चलो क़ि जिद लगाये बैठा था.विभु को उदास देखकर आखिर सिमरन ने मोबाईल से गगन क़ा nmbar मिलाया और बस इतना कहा-''तुम तो फोन करना मत,विभु क़ा भी dhyan नहीं tumhe?'' गगन ने एक क्षण की चुप्पी के बाद कहा -''सिम्मी मैं शर्मिंदा था......मुझे शब्द नहीं मिल रहे थे...........पर तुम अपने घर क़ा गेट तो खोल दो ........मैं बाहर ही खड़ा हूँ....!''यह सुनते ही सिमरन की अंको me आंसू आ गए वो विभु को गोद में उठाकर गेट खोलने के लिए बाद ली.  गेट खोते ही गगन को देखकर विभु मचल उठा ........पापा.....पापा........'' कहता हागगन की गोद में चला गया.सिमरन ने देखा की आज उसका फूल फिर से खिल उठा था और महक भी रहा था.

2 टिप्‍पणियां:

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

सुंदर मासूम सी कथा.... दिवाली की मंगलकामनाएं

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

निराशा से आशा दिखलाती एक अच्छी कहानी.

एक बात और -- (1)वैसे तो आप के ब्लॉग का डिस्प्ले अच्छा है पर कुछ परिवर्तन की भी आवश्यकता है(eg.size of Welcome Image is exceeds the post template) जिससे और अच्छा लुक आ सके-इस हेतु मैं आप की मदद भी कर सकता हूँ.
(2)संभव हो तो लिखने के बाद पुनः अवलोकन भी करलें.

(कृपया अन्यथा न लीजियेगा)

सादर