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एक चूक जाती है जिंदगी निगल
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जीवन में ह्रदय के उदगार विभिन्न रूप में प्रकट होते हैं.कभी कहानी कभी कविता से भरा ये ब्लॉग.....
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गुरुवार, 29 नवंबर 2012
एक चूक जाती है जिंदगी निगल
मंगलवार, 27 नवंबर 2012
है औरत बस फबन मर्द के घर की 'नूतन'


मर्द बोला हर एक फन मर्द में ही होता है ,
औरत के पास तो सिर्फ बदन होता है .
फ़िज़ूल बातों में वक़्त ये करती ज्जाया ,
मर्द की बात में कितना वजन होता है !
हम हैं मालिक हमारा दर्ज़ा है उससे ऊँचा ,
मगर द्गैल को ये कब सहन होता है ?
रहो नकाब में तुम आबरू हमारी हो ,
बेपर्दगी से बेहतर तो कफ़न होता है .
है औरत बस फबन मर्द के घर की 'नूतन'
राज़ औरत के साथ ये भी दफ़न होता है .
शिखा कौशिक 'नूतन'
[द्गैल -धोखेबाज़ , फबन-सज सज्जा ]
गुरुवार, 22 नवंबर 2012
शौहर की मैं गुलाम हूँ बहुत खूब बहुत खूब


शौहर की मैं गुलाम हूँ बहुत खूब बहुत खूब ,
दोयम दर्जे की इन्सान हूँ बहुत खूब बहुत खूब .
कर सकूं उनसे बहस बीवी को इतना हक कहाँ !
रखती बंद जुबान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
उनकी नज़र में है यही औकात इस नाचीज़ की ,
तफरीह का मैं सामान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
रखा छिपाकर दुनिया से मेरी हिफाज़त की सदा ,
मानती अहसान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
वे पीटकर पुचकारते कितने रहमदिल मर्द हैं !
उन पर ही मैं कुर्बान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
'नूतन' ज़माने में नहीं औरत की कीमत रत्ती भर ,
देखकर हैरान हूँ बहुत खूब बहुत खूब !
शिखा कौशिक 'नूतन'
मेरी बेटी ने लिया जन्म
एक बेटी को जन्म देने वाली माता के भावों को इस रचना के माध्यम से प्रकट करने का प्रयास किया है -
मेरी बेटी ने लिया जन्म ; मैं समझ पायी ,
सारी जन्नत ही मेरी गोद में सिमट आई .
उसने जब टकटकी लगाकर मुझे देख लिया ,
ख़ुशी इतनी मिली कि दिल में न समां पाई .
मखमली हाथों से छुआ चेहरा मेरा ,
मेरे तन में लहर रोमांच की सिहर आई .
मुझे 'माँ' बनने की ख़ुशी दी मेरी बेटी ने ,
'जिए सौ साल ' मेरे लबो पर ये दुआ आई .
मुझे फख्र है मैंने जन्म दिया बेटी को ,
आज मैं क़र्ज़ अपनी माँ का हूँ चुका पाई .
शिखा कौशिक 'नूतन'
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from facebook |
मेरी बेटी ने लिया जन्म ; मैं समझ पायी ,
सारी जन्नत ही मेरी गोद में सिमट आई .
उसने जब टकटकी लगाकर मुझे देख लिया ,
ख़ुशी इतनी मिली कि दिल में न समां पाई .
मखमली हाथों से छुआ चेहरा मेरा ,
मेरे तन में लहर रोमांच की सिहर आई .
मुझे 'माँ' बनने की ख़ुशी दी मेरी बेटी ने ,
'जिए सौ साल ' मेरे लबो पर ये दुआ आई .
मुझे फख्र है मैंने जन्म दिया बेटी को ,
आज मैं क़र्ज़ अपनी माँ का हूँ चुका पाई .
शिखा कौशिक 'नूतन'
बुधवार, 21 नवंबर 2012
अपमानों के अंधड़ झेले ; छल तूफानों से टकराए

अपमानों के अंधड़ झेले ;
छल तूफानों से टकराए ,
कंटक पथ पर चले नग्न पग
तब हासिल हम कुछ कर पाए !
आरोपों की कड़ी धूप में
खड़े रहे हम नंगे सिर ,
लगी झुलसने आस त्वचा थी
किंचित न पर हम घबराये !
व्यंग्य-छुरी दिल को चुभती थी ;
चुप रहकर सह जाते थे ,
रो लेते थे सबसे छिपकर ;
सच्ची बात तुम्हे बतलाएं !
कई चेहरों से हटे मखौटे ;
मुश्किल वक्त में साथ जो छोड़ा ,
नए मिले कई हमें हितैषी
जो जीवन में खुशियाँ लाये !
धीरज बिन नहीं कुछ भी संभव ;
यही सबक हमने है सीखा ;
जिन वृक्षों ने पतझड़ झेला
नव कोंपल उन पर ही आये !
शिखा कौशिक 'नूतन'
[ मेरी शोध यात्रा के पड़ावों को इस भावाभिव्यक्ति के माध्यम से उकेरने का एक सच्चा प्रयास मात्र है ये ]
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