[google से sabhar ]
कभी आंसू नहीं मेरी आँख में आने देती ;
मुझे माँ में खुदा की खुदाई दिखती है .
लगी जो चोट मुझे आह उसकी निकली ;
मेरे इस जिस्म में रूह माँ की ही बसती है .
देखकर खौफ जरा सा भी मेरी आँखों में ;
मेरी माँ मुझसे दो कदम आगे चलती है .
मेरे चेहरे से मेरे दिल का हाल पढ़ लेती ;
मुझे माँ कुदरत का एक करिश्मा लगती है .
नहीं कोई भी माँ से बढ़कर दुनिया में ;
इसीलिए तो माँ दिल पर राज़ करती है .
शिखा कौशिक
[vikhyat ]
6 टिप्पणियां:
एक नग़मा मां के लिए
बिलकुल सच..माँ की तुलना कौन कर सकता है...बहुत भावपूर्ण प्रस्तुति...
माँ तुझे सलाम ,सुंदर और संवेदनशील रचना बधाई
Bahut Sunder...
माँ को सलाम
माँ तो बस माँ है
बहुत सुंदर रचना ....
बधाई आपके शुभ विचारों को .....!!
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