स्त्री बनाम स्त्री !
[google से साभार ]
आज तक जितनी भी
जली-कटी उसने सुनी थी ;
सारी की सारी
बहू को ज्यों की
त्यों कही थी
क्योंकि ..
सास भी कभी
बहू थी !
बहू बनकर आई
सास को माँ न मान पाई ;
माँ को होता था दर्द
खूब सेवा करती थी
पर सास के तड़पने पर भी
अपने कमरे में
आराम से लेटी थी ;
यकीन नहीं होता
ये बहू भी कभी
बेटी थी !
अपनी भाभी की
चुगली माँ से करती थी ;
उन दोनों में मतभेद कर
मज़े लेती थी ;
खुद ब्याह कर जब
ससुराल आई ;
अपने जैसी ही ननद पाई ;
ये सबक था ...या सजा थी
उस बहू के लिए
जो खुद एक
ननद थी !
shikha kaushik
[vikhyat ]
[google से साभार ]
आज तक जितनी भी
जली-कटी उसने सुनी थी ;
सारी की सारी
बहू को ज्यों की
त्यों कही थी
क्योंकि ..
सास भी कभी
बहू थी !
बहू बनकर आई
सास को माँ न मान पाई ;
माँ को होता था दर्द
खूब सेवा करती थी
पर सास के तड़पने पर भी
अपने कमरे में
आराम से लेटी थी ;
यकीन नहीं होता
ये बहू भी कभी
बेटी थी !
अपनी भाभी की
चुगली माँ से करती थी ;
उन दोनों में मतभेद कर
मज़े लेती थी ;
खुद ब्याह कर जब
ससुराल आई ;
अपने जैसी ही ननद पाई ;
ये सबक था ...या सजा थी
उस बहू के लिए
जो खुद एक
ननद थी !
shikha kaushik
[vikhyat ]
2 टिप्पणियां:
सटीक प्रस्तुति .... स्त्रियॉं को सोचना चाहिए ...
काश स्त्री यह समझ पाती की खुद की सास भी कभी बहुत थी....
एक टिप्पणी भेजें