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रविवार, 20 मई 2012

इतने न कर जुल्म माँ बाप पर बन्दे !


इतने  न कर  जुल्म  माँ बाप पर बन्दे !

दुनियावी तजुर्बा है   हक़ीकत  में है  होता  ;
जो माँ -बाप का न  होता   किसी का नहीं होता .

जब  टोकता  है  उनको  दो  टुकड़ों  के लिए   ;
मुंह  से  कहें  न  कुछ  पर  दिल  तो  है रोता  .

तूने  भरी  एक  आह   वे  जागे  रात  भर   
वे तडपे दर्द से  तू  आराम  से सोता  ?

जिसने  करी  दुआ  तू रहे  सलामत  ;
उनकी  ही  मौत  की तू राह  है जोहता  .

इतने  न कर  जुल्म  माँ बाप पर बन्दे  ;
वे सोचने  लगे  कि  बेऔलाद  ही होता .
                        
                                         शिखा कौशिक 
                                '' vikhyat  ''

5 टिप्‍पणियां:

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

बहुत संवेदनशील ...

अरुन अनन्त ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना सिखा जी
अरुन (arunsblog.in)

Unknown ने कहा…

वाह वाह वाह ........
बात तो यहीं पूरी हो गई.......
दुनियावी तजुर्बा है हक़ीकत में है होता ;
जो माँ -बाप का न होता किसी का नहीं होता .
____बधाई !

Arshad Ali ने कहा…

Sudar aur samvedansheel rachna...bilkul sahi..aur unke liye ek sikh jo apne maa baap ko bhule hue hain.

Anita ने कहा…

बहुत मार्मिक कविता.. माता-पिता के आशीर्वाद से बढ़कर कुछ भी नहीं...