इतने न कर जुल्म माँ बाप पर बन्दे !
जो माँ -बाप का न होता किसी का नहीं होता .
जब टोकता है उनको दो टुकड़ों के लिए ;
मुंह से कहें न कुछ पर दिल तो है रोता .
तूने भरी एक आह वे जागे रात भर
वे तडपे दर्द से तू आराम से सोता ?
जिसने करी दुआ तू रहे सलामत ;
उनकी ही मौत की तू राह है जोहता .
इतने न कर जुल्म माँ बाप पर बन्दे ;
वे सोचने लगे कि बेऔलाद ही होता .
शिखा कौशिक
'' vikhyat ''
5 टिप्पणियां:
बहुत संवेदनशील ...
बहुत सुन्दर रचना सिखा जी
अरुन (arunsblog.in)
वाह वाह वाह ........
बात तो यहीं पूरी हो गई.......
दुनियावी तजुर्बा है हक़ीकत में है होता ;
जो माँ -बाप का न होता किसी का नहीं होता .
____बधाई !
Sudar aur samvedansheel rachna...bilkul sahi..aur unke liye ek sikh jo apne maa baap ko bhule hue hain.
बहुत मार्मिक कविता.. माता-पिता के आशीर्वाद से बढ़कर कुछ भी नहीं...
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