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रविवार, 20 मई 2012

इतने न कर जुल्म माँ बाप पर बन्दे !


इतने  न कर  जुल्म  माँ बाप पर बन्दे !

दुनियावी तजुर्बा है   हक़ीकत  में है  होता  ;
जो माँ -बाप का न  होता   किसी का नहीं होता .

जब  टोकता  है  उनको  दो  टुकड़ों  के लिए   ;
मुंह  से  कहें  न  कुछ  पर  दिल  तो  है रोता  .

तूने  भरी  एक  आह   वे  जागे  रात  भर   
वे तडपे दर्द से  तू  आराम  से सोता  ?

जिसने  करी  दुआ  तू रहे  सलामत  ;
उनकी  ही  मौत  की तू राह  है जोहता  .

इतने  न कर  जुल्म  माँ बाप पर बन्दे  ;
वे सोचने  लगे  कि  बेऔलाद  ही होता .
                        
                                         शिखा कौशिक 
                                '' vikhyat  ''