जो बिछड़ जाते हैं ..मेरी आवाज में
जो बिछड़ जाते हैं हमेशा के लिए
छोड़ जाते हैं बस यादों के दिए
जिनकी रौशनी में उनका साथ पाते हैं
वो नहीं आयेंगे ये भूल जाते हैं .
जिन्दगी कितने काँटों से है भरी
हर दिन कर रही हम सब से मसखरी
जो चला था घर से मुस्कुराकर के अभी
एक हादसा हुआ और आया न कभी
साथी राहों में ऐसे ही छूट जाते हैं
वो नहीं आयेंगे ये भूल जाते हैं .
रोज सुबह होती और शाम ढलती है
जिन्दगी की यू ही रफ़्तार चलती है
वो सुबह और शाम कितनी जालिम है
जब किसी अपने की साँस थमती है
हम ग़मों की आग में जिन्दा जल जाते हैं .
वो नहीं आयेंगे ये भूल जाते हैं .
शिखा कौशिक
5 टिप्पणियां:
अपनों के जाने के गम अतुलनीय होते हैं ..... संवेदनशील रचना
जब किसी अपने की साँस थमती है
हम ग़मों की आग में जिन्दा जल जाते हैं .
मार्मिक अभिव्यक्ति
बेहद दुखद सत्य!
बहुत खूब शिखा जी!
सादर
आपकी यह रचना पढ़कर जाने क्यूँ यह गीत याद आया की ज़िंदगी प्यार का गीत है इसे हर दिल को गाना पड़ेगा ज़िंदगी ग़म का सागर भी है हंस के उस पार जाना पड़ेगा..... मरमाइक अभिव्यक्ति.... समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://mhare-anubhav.blogspot.com/2011/11/blog-post_20.html
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