वो लड़की
रौंद दी जाती है अस्मत जिसकी ,
करती है नफरत
अपने ही वजूद से
जिंदगी हो जाती है बदतर उसकी
मौत से .
वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी ,
घिन्न आती है उसे
अपने ही जिस्म से ,
नहीं चाहती करना
अपनों का सामना ,
वहशियत की शिकार
बनकर लाचार
घबरा जाती है हल्की सी
आहट से .
वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी
समझा नहीं पाती खुद को ,
संभल नहीं पाती
उबर नहीं पाती हादसे से ,
चीत्कार करती है उसकी आत्मा
चीथड़े -चीथड़े उड़ गए हो
जिसकी गरिमा के
जिए तो जिए कैसे ?
वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी
घर से बहार निकलना
उसके लिए है मुश्किल
अब सबकी नज़रे
वस्त्रों में ढके उसके जिस्म पर
आकर जाती है टिक ,
समाज की कटारी नज़र
चीरने लगती है उसके पहने हुए वस्त्रों को ,
वो महसूस करती है खुद को
पूर्ण नग्न ,
छुटकारा नहीं मिलता उसे
म्रत्युपर्यन्त इस मानसिक दुराचार से .
वो लड़की
रौद दी जाती है अस्मत जिसकी ........
शिखा कौशिक 'नूतन '
9 टिप्पणियां:
सत्य को कहती मर्मस्पर्शी रचना
बहुत मार्मिक प्रस्तुति...
सच्चाई से कही गयी बात
बेहतर लेखनी !!!
बेहतर लेखनी !!!
बहुत ही मर्मस्पर्शी रचना
दर्द की अभिव्यक्ति
सच जीवन भर की टीस है यह......
मर्मस्पर्शी रचना ..आभार
marmsparshi prastuti
एक टिप्पणी भेजें