ये औरत ही है !
पाल कर कोख में जो जन्म देकर बनती है जननी
औलाद की खातिर मौत से भी खेल जाती है .
बना न ले कहीं अपना वजूद औरत
कायदों की कस दी नकेल जाती है .
मजबूत दरख्त बनने नहीं देते
इसीलिए कोमल सी एक बेल बन रह जाती है .
हक़ की आवाज जब भी बुलंद करती है
नरक की आग में धकेल दी जाती है
फिर भी सितम सहकर वो मुस्कुराती है
ये औरत ही है जो हर ज़लालत झेल जाती है .
शिखा कौशिक
[vikhyaat ]
4 टिप्पणियां:
Wah ...
बहार हो कि खिज़ां मुस्कुराए जाते हैं,
हयात हम तेरा एहसाँ उठाए जाते हैं |
कोई भ़ी लम्हा क़यामत से कम नहीं फिर भ़ी,
तुम्हारे सामने हम मुस्कुराए जाते हैं |
http://mushayera.blogspot.com/
लेकिन आज की महिला अपने हक के लिये आवाज उठाना जानती है...
फिर भी सितम सहकर वो मुस्कुराती है
ये औरत ही है जो हर ज़लालत झेल जाती है .
सटीक अभिव्यक्ति ... औरत में ही होती है हर तरह की सहनशीलता ... कुछ अपवाद भी होती हैं .
वाह गजब परिभाषा से उकेरा आपने एक औरत को ,बेहतरीन भावाभिव्यक्ति
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