सिन्दूरी सुबह है ...उजली हर रात है
अपने वतन की तो जुदा हर एक बात है
जितने नज़ारे हैं जन्नत से प्यारे है
भारत तो धरती को रब की सौगात है .
बासन्ती मादकता मन को लुभाती है
रंगीले फागुन में सृष्टि रंग जाती है
गर्मी मिटाने आती सावन फुहारे है
सब ऋतुओं में आ जाती उत्सव बहारे हैं
गहरे निशा के तम में उज्जवल प्रभात है
भारत इस धरती .............................
पर्वत हिमालय जैसा सिर पर एक ताज है
पावन गंगा हर लेती हम सबके पाप है
बागों में कोयल गाती कितना सुरीला है
अपने वतन में सब कुछ कितना रंगीला है
सूखी -प्यासी धरती पर ठंडी बरसात है
भारत इस धरती को .....
शिखा कौशिक
[विख्यात ]
3 टिप्पणियां:
बहुत सुन्दर गीत...
सादर बधाई...
जयहिंद
वाकई भारत हे तो बात ही अलग है धरती का स्वर्ग है भारत समय मिले कभी तो आयेगा मेरी पोस्ट पर आपका स्वागत है
http://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_19.html
http://mhare-anubhav.blogspot.com/
बहुत बढि़या।
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