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रविवार, 18 जनवरी 2015

*सुना कुत्तों की दावत है !*


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कहर बरसा  मेरे घर तो वो बोले सब सलामत है ,
गई छींटें जो उनकें घर तो बोले अब क़यामत है !
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मेरे बच्चों ने पी पानी गुज़ारी रात सारी है ,
बराबर के बड़े घर में सुना कुत्तों की दावत है !
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बिना गाली के जिनकी गुफ्तगूं होती नहीं पूरी ,
हमें इलज़ाम देकर कह रहे हम बे-लियाकत हैं !
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क़त्ल करते हैं और लाशों पे जो करते सियासत हैं ,
नहीं मालूम उनको एक अल्लाह की अदालत है !
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हमारे हाथ में है जो कलम वो सच ही लिखेगी ,
कलम के कातिलों से इस तरह करनी बगावत है !


शिखा कौशिक 'नूतन'

शनिवार, 10 जनवरी 2015

'अभी हार मत मानो !'


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असफलता से मिलेगी ;
राह सफलता की ,
है जरूरत नर नहीं ;
किंचित विकलता की ,
खुद में छिपी जो शक्ति है ,
उसको तो पहचानो !
अभी हार मत मानो !
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लूट गया सर्वस्व ;
अश्रु मत बहाओ तुम ,
होकर सचेत फिर उठो ;
न यूँ रहो गुमसुम ,
बिगड़े हुए काम को
ऐसे संवारो   !
अभी हार मत मानो !
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गिर गए तो क्या हुआ ;
घुटने न टेको ,
असफल होकर पुनः ;
प्रयास कर देखो ,
जय मिलेगी एक दिन ;
सत्य को जानो !
अभी हार मत मानो !

शिखा कौशिक 'नूतन'

सोमवार, 29 दिसंबर 2014

''नया ये साल ऐसा हो !''




ज़मी ज़न्नत बने अपनी ,
अमन की अब हुकूमत हो ,
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !
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 दिलों की नफ़रतें सारी  ,
सुपुर्द -ए-खाक हो जायें ,
न केवल गैर की ,अपनी
भी नीयत पाक हो जाये ,
मिटे जब दुश्मनी दिल से ;
समां ये ज़श्न जैसा हो !
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !
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न कुचली जायें कोखों में ,
न ऑनर के लिए मारें ,
लुटे औरत की न अस्मत ,
मिले  अब हक़ उसे सारे  ,
बराबर का हो जब दर्ज़ा ;
गुरूर-ए-मर्द कैसा हो !
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !
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मिले दो वक्त की रोटी  ,
न भूखा अब कोई  सोये ,
अन्न का दाता अब कोई ,
क़र्ज़ का बोझ न ढोये ,
मिले मेहनत का फल मीठा ;
किसानों पर भी पैसा हो !
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !
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दिखाकर ख़्वाब हज़ारों ,
हुए सत्ता पे जो काबिज़ ,
मुकर जायें जो वादों से ,
करें बर्दाश्त न हरगिज़ ,
खिलाफत हम करें खुलकर ;
तभी जैसे को तैसा  हो !
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !
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चलें रंगों की बस गोली ,
मनें संग ईद और होली ,
छटें आतंक के कोहरे ,
न जनता क़त्ल हो भोली ,
नहीं हथियार पर 'नूतन'
अहिंसा पर भरोसा हो !
मिटें दिल की सभी दूरी ,
नया ये साल ऐसा हो !

शिखा कौशिक 'नूतन'








बुधवार, 24 दिसंबर 2014

माँ का चुम्बन !


 मेरे माथे पर 
नरम -गरम 
दो अधरों की छुअन ,
कितना पावन !
कितना पवित्र !
माँ का चुम्बन !

फैलाकर बाहें 
माँ का घुटनों 
तक झुक जाना ,
दौड़कर मेरा 
माँ से लिपट जाना !
मातृत्व का अभिनन्दन !
कितना पावन !
कितना पवित्र !
माँ का चुम्बन !


ढिठाई पर पिटाई ,
मेरा रूठ जाना ,
माँ का मनाना ,
माँ का दुलार ,
ममता की फुहार !
माँ से शुरू 
माँ पर ख़त्म !
मेरा बचपन !
कितना पावन !
कितना पवित्र !
माँ का चुम्बन !

शिखा कौशिक 'नूतन '

शनिवार, 4 अक्टूबर 2014

'एक नया अध्याय खोल'

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मत बहाने बना
अपनी अकर्मण्यता के लिए ;
जो दोष हैं तुझमें
बेझिझक उन्हें स्वीकार कर;
जिन्दगी से प्यार कर.
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गिर गया तो क्या हुआ
गिरकर सम्भलते हैं सभी;
एक नया अध्याय खोल
हारी बाजी जीतकर;
जिन्दगी से प्यार कर.
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मैं नहीं कुछ भी;
नहीं कर सकता कुछ भी अब कभी;
इस तरह न बैठकर
मौत का इंतजार कर;
जिन्दगी से प्यार कर.

SHIKHA KAUSHIK 'NUTAN'