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सोमवार, 5 सितंबर 2011

प्रथम -पूजनीय -श्री गणेश [अष्ट विनायक -वक्रतुंड ]


किसी भी कार्य को आरम्भ करने से पूर्व ''श्री गणेशाय नम: '' मन्त्र का उच्चारण समस्त विघ्नों को हरकर कार्य की सफलता को सुनिश्चित करता है .पौराणिक आख्यान के अनुसार -एक बार देवताओं की सभा बुलाई गयी और यह घोषणा की गयी कि-''जो सर्वप्रथम तीनों लोकों का चक्कर लगाकर लौट आएगा वही देवताओं का अधिपति कहलायेगा .समस्त देव तुरंत अपने वाहनों पर निकल पड़े किन्तु गणेश जी का वाहन तो मूषक है जिस पर सवार होकर वे अन्य देवों की तुलना में शीघ्र लौट कर नहीं आ सकते थे .तब तीक्ष्ण मेधा सम्पन्न श्री गणेश ने   माता-पिता [शिव जी व्  माता पार्वती ] की परिक्रमा की क्योंकि तीनों लोक माता-पिता के चरणों  में बताएं गएँ हैं .श्री गणेश की मेधा शक्ति का लोहा मानकर उन्हें 'प्रथम पूज्य -पद ' से पुरुस्कृत किया गया .

 ''अष्ट -विनायक ''
भगवान   श्री गणेश के अनेक   रूपों   की पूजा   की जाती  है .इनमे इनके आठ स्वरुप अत्यधिक प्रसिद्ध  हैं .गणेश जी के इन   आठ स्वरूपों   का नामकरण   उनके   द्वारा   संहार किये गए असुरों के आधार पर किया गया है .सर्वप्रथम अष्ट-विनायक रूप में ''वक्रतुंड'' ब्रह्मरूप का परिचय इस प्रकार है -
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''वक्रतुंड '' अवतार ये ,सब देह धारण करता है ,
ब्रह्मरूप ,मत्सरासुर-हन्ता ,सिंह वाहन पर चलता है .''

श्री गणेश के हुए ;अब तक कई अवतार
जिनमे आठ प्रमुख हुए ;मुद्गल पुराणानुसार ,
सर्वप्रथम हैं 'वक्रतुंड' ;उन्हें मेरा प्रणाम !
कथा कहूँ मैं प्रभु की ,सुनिए देकर कान .

देवराज   -प्रमाद   से हुई मत्सरासुर उत्पत्ति ;
दैत्य गुरुसे दीक्षा पञ्चाक्षरी  मन्त्र की प्राप्त की ,
'ॐ नम: शिवाय 'से किया कठोर तप उसने ;
हो प्रसन्न फिर 'अभय' का वरदान दिया था शिव ने . 

पाकर वरदान प्रभु से मत्सर अपने घर  आया ;
शुक्राचार्य ने तब उसे दैत्यों  का नृप बनाया ,
फिर उसके मंत्री सदा उसे देते 'विश्व-विजय 'सलाह ,
शक्ति-पद का मद उसके भी सिर चढ़कर  था बोल रहा .

बलशाली उस असुर ने सेना को साथ लिया ;
पृथ्वी के राजाओं पर हमला फिर बोल दिया ,
उस असुर के समक्ष कोई नृप न टिक सका ;
कुछ पराजित हो गए ,कोई कन्दरा में जा छिपा .

पृथ्वी-विजय के बाद पाताल-स्वर्ग को बढ़ा;
''शेष'' भी आधीन हो ;कराधान को  राजी हुआ ,
वरुण,कुबेर,यम भी न उसका विरोध कर सके ,
इंद्र के घुटने भी मत्सर के आगे थे टिके .


पृथ्वी-स्वर्ग-पाताल का मत्सर था राजा हो गया ;
तीनों लोक में असुर आतंक -तम था बढ़ गया ,
त्रस्त हो सब देवता कैलाश पहुंचे जोड़ हाथ ;
ब्रह्मा जी व् श्री हरि- देवताओं के थे साथ .

देवताओं ने सुनाएँ दैत्य -अत्याचार थे ;
'दुष्कर्म है ये महा' शिव के ये उद्गार थे ,
यह समाचार जब मत्सर के कान में पड़ा;
कैलाश पर भी आक्रमण करने को वो आगे बढ़ा .


घोर युद्ध शिव के संग मत्सर का होने था लगा ;
किन्तु अपने बल से उसने शिव को भी दे दी दगा ,
बांध शिव को पाश में कैलाश -स्वामी बन गया ,
कैलाश पर रहते हुए आतंक फैलता रहा .

मत्सर-विनाश कैसे हो ?देवों की थी चिंता यही ;
भगवान् दत्तात्रेय तभी उनके निकट आये वही  ,
वक्रतुंड मन्त्र ''गं'' का उपदेश देवों को दिया ;
देवताओं ने ह्रदय से मन्त्र का था जप किया .


संतुष्ट हो आराधना से 'वक्रतुंड' प्रकट हुए ,
'आप सब निश्चिन्त हो 'देवों से ये वचन कहे ,
मत्सरासुर का घमंड चूर अब मैं कर दूंगा ;
आपकी समस्त पीडाओं को शांत कर दूंगा .

असंख्य गण के संग मत्सर-नगर को घेरा था ;
काली रात्रि के बाद ये नया सवेरा था ,
पांच दिन घनघोर युद्ध पूरे प्रवाह से था चला ;
वक्रतुंड के दो गणों ने मत्सर सुतों का वध किया .


पुत्र वध से व्याकुल मत्सर उपस्थित था हुआ;
उन्मत्तता  में प्रभु को गालियाँ देने लगा ,
तब प्रभावी प्रभु ने उससे ये वचन कहे -
'शस्त्र  धर' शरण में आ ; प्राण हैं गर तुझको प्रिय .

अन्यथा निश्चित ही तू अब तो मारा जायेगा ;
अन्याय  का ये घोर तम उस क्षण ही मिटने पायेगा ,
देखकर विकराल  रूप  प्रभु का, हो गया असुर विह्वल ;
क्षीण-शक्तिवान मत्सर करने लगा उनका नमन .

मत्सर की प्राथना से वक्रतुंड संतुष्ट हुए ;
'अभय'-'अपनी भक्ति' वर दे ,उससे ये वचन कहे -
पाताल लोक  में रहो ,जीवन बिताओ शांति से ,
अन्याय-अत्याचार पथ पर चलना न तुम भ्रान्ति से .

देवताओं को भी उसकी कैद से छुड़ा लिया  ,
अपनी भक्ति का उन्हें  वरदान  प्रभु ने दिया ,
'वक्रतुंड' भगवान् की महिमा का ये गुणगान है ,
उनके ह्रदय में सर्वदा  भक्त का स्थान है .

         ''जय श्री वक्रतुंड भगवान् की ''
                     
                                शिखा कौशिक










रविवार, 4 सितंबर 2011

मैं बेटी का हक मांगूगी.

      Cute Little Girl  
                 [क्यूट बेबी से साभार ]
                           क्यूँ किया पता हे ! मात-पिता? 
                                 कि कोख में मैं एक कन्या हूँ.
                               उस पर ये गर्भ पात निर्णय
                            सुनकर मैं कितनी चिंतित हूँ?
                                हाँ !सुनो जरा खुद को बदलो
                                मैं ऐसे हार न मानूगीं;
                               हे! माता तेरी कोख में अब
                                मैं बेटी का हक़ मागूंगी  !
               बेटी के रूप में जन्म लिया;
              क्यूँ देख के मुरझाया चेहरा;
             मैं भी संतान तुम्हारी हूँ;
            फिर क्यूँ छाया दुःख का कोहरा
           लालन पालन मेरा करके
            मुझको भी जीने का हक दो
            मैं करुं तुम्हारी सेवा भी
           ऐसी मुझमे ताक़त भर दो
          बेटी होकर ही अब मैं तुमसे
          बेटो जैसा हक मांगूगी
          हे माता! तेरी कोख में अब
        मैं बेटी का हक मांगूगी.  

       

गुरुवार, 1 सितंबर 2011

श्री गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनायें !

Lord Ganesha Wallpapers


सर्वप्रथम आप जानिए ''संकष्टनाशनस्तोत्रं '' के बारे में -

Ganesha Chaturthi Wallpapers''नारद'' जी कहते हैं -



''पहले मस्तक झुकाकर गौरिसुत को करें प्रणाम ;
आयु,धन, मनोरथ-सिद्धि ;स्मरण से मिले वरदान ;
'वक्रतुंड' प्रथम नाम है ;''एकदंत'' है  दूजा ;
तृतीय 'कृष्णपिंगाक्ष' है ;'गजवक्त्र' है चौथा ;
'लम्बोदर'है पांचवा,छठा 'विकट' है नाम,
'विघ्नराजेन्द्र' है सातवाँ ;अष्टम 'धूम्रवर्ण' भगवान,
नवम 'भालचंद्र' हैं ,दशम 'विनायक' नाम ,
एकादश 'गणपति' हैं ,द्वादश 'गजानन' मुक्तिधाम ,
प्रातः-दोपहर-सायं जो नित करता नाम-ध्यान ;
सब विघ्नों का भय हटे, पूरण होते काम  ,
बारह-नाम का स्मरण,सब सिद्धि करे प्रदान ;
ऐसी  महिमा प्रभु की उनको है सतत प्रणाम ,  
इसका जप नित्य करो ;पाओ इच्छित वरदान ;
विद्या मिलती छात्र को ,निर्धन होता धनवान ,
जिसको पुत्र की कामना उसको मिलती संतान ;
मोक्षार्थी को मोक्ष का मिल जाता है ज्ञान ,
छह मास में इच्छित फल देता स्तोत्र महान ,
एक वर्ष जप करने से होता सिद्धि- संधान ,
ये सब अटल सत्य है ,भ्रम का नहीं स्थान ;
मैं 'नारद 'यह बता रहा ;रखना तुम ये ध्यान ,
जो लिखकर स्तोत्र ये अष्ट-ब्राहमण को करे दान ;
सब विद्याएँ जानकर बन जाता है विद्वान .''

   [श्री गणेश जी की प्रेरणा से यह 'संकष्टनाशनस्तोत्रं' सरल भाषा में प्रस्तुत किया है .आने वाले दिनों में भगवान श्री गणेश के आठ प्रसिद्द रूपों का एक -एक कर परिचय प्रस्तुत करने का प्रयास करूंगी .]
                                               शिखा कौशिक
                   http://shikhakaushik666.blogspot.com/






मंगलवार, 23 अगस्त 2011

सत्यमेव जयते ''


सत्यमेव जयते ''



आंसू को तेजाब बना लो
इस दिल को फौलाद बना लो
हाथों को हथियार बना लो
बुद्धि को तलवार बना लो

फिर मेरे संग कदम मिलाकर
प्राणों में तुम आग लगाकर
ललकारों उन मक्कारों को
भारत माँ के गद्दारों को ,

धुल चटा दो इन दुष्टों को
लगे तमाचा इन भ्रष्टों को
इन पर हमला आज बोल दो
इनके सारे राज खोल दो ,

आशाओं के दीप जला दो
मायूसी को दूर भगा दो
सोया मन हुंकार भरे अब
सच की जय-जयकार करें सब ,

झूठे का मुंह कर दो काला
तोड़ो हर शोषण का ताला
हर पापी को कड़ी सजा दो 
कुकर्मों  का इन्हें मजा दो ,

सत्ता मद में जो हैं डूबे
लगे उन्हें जनता के जूतें
जनता भूखी नंगी बैठी
उनकी बन जाती है कोठी ,
                                                                                                                                    
आओ इनकी नीव हिला दे
मिटटी में अब इन्हें मिला दे
भोली नहीं रही अब जनता
इतना इनको याद दिला दे ,

हम मांगेंगे अब हक़ अपना
सच कर लेंगे हर एक सपना
आगे बढना है ये कहते
''सत्यमेव जयते -सत्यमेव जयते  ''



शनिवार, 20 अगस्त 2011

श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !


श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें !
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राम बनकर आते है; कृष्ण बनकर आते है;
कभी मौहम्मद;नानक; ईसा बनकर आते हैं;
वो प्रभु संसार का दुःख मिटाने आते हैं.
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पाप की कीचड में भी
पुण्य -कमल खिल उठता है;
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मूक के मुख से मधुर
गायन का स्वर निकलता है;
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दुष्ट के दुष्कर्मों का संहार करने आते हैं;
वो प्रभु संसार का दुःख मिटाने आते हैं.
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उनके आगमन से
घट जाता तम का अहम् ;
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ज्ञान ज्योति से चमक उठते 
अज्ञान से अन्धें नयन ,
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आस के बुझे  दीपक  जगाने आते हैं;
वो प्रभु संसार का दुःख मिटाने आते हैं.
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                                       शिखा कौशिक 
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