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गुरुवार, 24 नवंबर 2011

सरहद पर हमें जाना है !


सरहद पर हमें जाना है !



सरहद पर हमें जाना है 
दुश्मन   ने   ललकारा    है 
मत  रोक हमें अब माता  .....मत  रोक  
मुश्किल अब   रुक पाना   है .





आग  लगी है प्राणों में 
फड़क रही हैं  भुजाएं 
भारत माँ ! के जयकारे से 
गूंजेंगी चारो दिशाएं 


दुश्मन को धूल चाटना है 
अपना वचन निभाना है 
मत  रोक हमें अब बहना....मत रोक 
मुश्किल अब रुक पाना है . 

शातिर है दुश्मन हमारा 
चलता वो टेढ़ी चाल है 
आज उस कायर का 
बनना हमको काल है 


उसको काट गिराना है 
झूठा अभिमान मिटाना है 
मत रोक हमें अब दुल्हन ...मत रोक 
मुश्किल अब रुक पाना है .

कितनी कोख उजाड़ी हैं ?
कितने छीने हैं भाई ?
सूनी करी कितनी मांगें ?
खुशियों में सेंध लगाई है 


सबका सबक सिखाना है 
सैनिक धर्म निभाना है 
मत रोक हमें अब बेटी .....मत रोक 
मुश्किल अब रुक पाना है .


                               जय हिंद !
                             शिखा कौशिक 
                       [विख्यात ]
[सभी फोटो गूगल से साभार ]


सोमवार, 21 नवंबर 2011

जो बिछड़ जाते हैं .


जो  बिछड़  जाते  हैं  ..मेरी आवाज में 
जो बिछड़ जाते हैं हमेशा के लिए 
छोड़ जाते हैं बस यादों के दिए 
जिनकी रौशनी में उनका साथ पाते हैं 
वो नहीं आयेंगे ये भूल जाते हैं .

जिन्दगी कितने काँटों से है भरी 
हर दिन कर रही हम सब से मसखरी 
जो चला था घर से मुस्कुराकर  के अभी 
एक हादसा हुआ और आया न कभी 
साथी राहों में ऐसे ही छूट जाते हैं 
वो नहीं आयेंगे ये भूल जाते हैं .

रोज सुबह होती और शाम ढलती है 
जिन्दगी की यू ही रफ़्तार चलती है 
वो सुबह और शाम कितनी जालिम है 
जब किसी अपने की साँस थमती है 
हम ग़मों की आग में जिन्दा जल जाते हैं .
वो नहीं आयेंगे ये भूल जाते हैं .
              शिखा कौशिक 

गुरुवार, 17 नवंबर 2011

वृक्ष की पुकार !

वृक्ष की पुकार !






वृक्ष करता है पुकार 
न जाने कितनी बार ?
हे मानव !तुमने इस निर्मम कुल्हाड़ी से 
मुझ  पर किया वार .



अब तक सहता रहा मैं 
तुम्हारा अत्याचार                           

तुम करते रहे मुझ से नफरत 
मैं करता रहा तुम से प्यार .

मैं देता तुम्हे ऑक्सीजन 
जिससे तुम्हे मिलता जीवन 
हटा कर प्रदूषण 
स्वच्छ बनता पर्यावरण .

यदि मैं न होता तो 
होती  ये  भूमि  बेकार  
तब  होती न फसल  
और  न होता व्यापार  

इस देश की जनसँख्या है अपार 
उसके लिए लाते कहाँ से खाद्यान 
का भंडार ?

'कहते हैं प्रकृति माँ है !
और इन्सान उसका बेटा है '
माँ सदा देती है प्यार 
पर बेटा करता उसी पर अत्याचार !

वृक्ष आगे बताता है 
क्यों वह हरा सोना कहलाता है?

मिटटी का कटाव कम कर 
उपजाऊपन  बढाता हूँ ;

वायु मंडल को नम कर 
वर्षा भी करवाता हूँ ;

औषधियां देकर 
राष्ट्रीय आय बढाता हूँ ;
लकड़ी देकर अनेक व्यापार 
चलवाता हूँ , 

बेंत;चन्दन,कत्था   ,गोंद  
इनसे चलते  हैं जो  व्यापार 
वे  ही  तो है देश की प्रगति  
का आधार  .

बाढ़ जब आती है 
सारा पानी पी जाता हूँ ;
देश को लाखों की हानि
 से बचाता हूँ .


भूमि के अन्दर का 
जल  -स्तर   ऊंचा  करता जाता हूँ 
रेगिस्तान के विस्तार पर 
मैं ही तो रोक लगाता   हूँ .

ईधन,फल -फूल ;चारा 
मैं ही तो देता हूँ 
लेकिन कभी तुमसे 
कुछ नहीं लेता हूँ 

 
यद्  रख मानव यदि तू 
मुझको काटता जायेगा 
तो तू अपने जीवन को भी 
नहीं बचा पायेगा ;
ऑक्सीजन;फल-फूल;औषधियां 
कहाँ से लायेगा ?

किससे फर्नीचर ;स्लीपर 
रेल के डिब्बे बनाएगा ?

न जाने कितने उद्योग 
मुझ पर हैं आधारित ?
उन्हें कैसे  चलाएगा ?
ये सब जुटाते-जुटाते 
क्या तू अपना अस्तित्व 
बचा पायेगा ?

कार्बन डाई ऑक्साइड  का काला बादल
जब आकाश में छाएगा 
तब हे मानव ! तुझे अपना 
काल स्पष्ट नज़र आएगा . 

 तुम्हारी होने वाली 
संतानों में कोई 
देख;सुन;चल नहीं पायेगा
उस समय उनके लिए 
वस्त्र,आहार 
कहाँ से लायेगा ?


हे मानव !मुझे अपने नष्ट 
होने का डर नहीं है ,
मुझे डर है कि मेरे 
नष्ट होने से 
तू भी नष्ट हो जायेगा !
तू भी नष्ट हो जायेगा !
तू भी नष्ट हो जायेगा !

                            शिखा कौशिक 
[sabhi photo 'foto search ]


रविवार, 6 नवंबर 2011

हे देव !! जाग जाइये ! जाग जाइये !!


हे देव !! जाग जाइये ! जाग जाइये !!


हे लक्ष्मीपति   !   हे श्री नारायण  !
आज कार्तिक-मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी है;
चार मास   व्यतीत हुए;
शयन-समय समाप्त हुआ;
हे सृष्टि के पालनहार !
जाग जाइये !जाग जाइये!!
****************  ******************
असुरों क़ा संहार करिए;
हम सबका उद्धार करिए;
मिटा दीजिये अज्ञान-तम;
जीव-जगत को बना दीजिये सुदरतम;
कल्याण कीजिये  !!
हे करुणासागर  !!
जाग जाइये ! जाग जाइये!
**************  ****************
हम जानते है!
आपकी निद्रा ''योग-निद्रा'' थी;
जिसमे आप अंतस में
निहार रहे थे सम्पूर्ण  ब्रह्माण्ड   को ;
करते थे नियोजन तब भी;
प्रभु बलि के द्वार से
अर्थात  पाताल-लोक से
लौट आइये !
हे देव !! जाग जाइये ! जाग जाइये !!

शुक्रवार, 4 नवंबर 2011

ये दुनिया मात्र मर्दों की नहीं है !


मेरी एक पोस्ट ''एक बेटी का परम्परा के मुंह पर करारा तमाचा  '' पर ''नव भारत टाइम्स' के मेरे ब्लॉग ''सच  बोलना चाहिए'' पर यह टिप्पणी आई थी
'' ग़लत किया उस लड़की ने परंपराव को तोड़ना नहीं चाहिए औरत कभी भी अग्नि नहिंज दे सकती , उस व्यक्ति की आत्मा को कभी भी मोख नहीं मिल सकता आज कल की लड़कियाँ अपपने आप को कुछ ज्या दा है आयेज समझती है ,लेकिन यह दुनिया मर्दो की है और उनकी है रहेगी 
जिसका जवाब मैं इन शब्दों में उन कुंठित सोच वाले पुरुषों को देना  चाहूंगी जो एक स्त्री की कोख से जन्म लेकर भी इस दुनिया को मात्र पुरुषों की कहने में कोई शर्म महसूस नहीं करते . 

''ये दुनिया मर्दों की है ''
कुंठिंत पुरुष-दंभ की ललकार 
पर स्त्री घुटने टेककर 
कैसे कर ले स्वीकार ?

जिस कोख में पला;जन्मा 
पाए जिससे  संस्कार 
उसी स्त्री की महत्ता ;गरिमा 
को कैसे रहा नकार ?

कभी नहीं माँगा;देती आई 
ममता,स्नेह ;प्रेम-दुलार 
उस नारी  को नीच मानना
बुद्धि  का अंधकार  

''अग्नि -परीक्षा ''को उत्सुक 
''सती ''की करता है जयकार !
फिर पुरुष कैसे कहता
स्त्री को नहीं ''अग्नि ''
देने का अधिकार ?

सेवा,समर्पण,शोषण 
बस इसकी स्त्री हक़दार ?
कृतघ्न पुरुष अब संभल जरा 
सुन नारी -मन चीत्कार 

आँख दिखाना ,धमकाना 
रख दे अपने हथियार  ! 
इनके  विरुद्ध खड़ी है नारी 
लेकर मेधा-तलवार 

खोलो अपनी सोच की गांठें
नारी शक्ति का अवतार 
नर-नारी के उचित मेल से 
सृष्टि  का विस्तार .
                            शिखा कौशिक 
                      [विख्यात ]