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रविवार, 10 अप्रैल 2011

तारों भरा आकाश

संध्या कहाँ हो तुम ? उषा ने अपनी छोटी बहन को ऊपर छत से आवाज लगाई तो सीढियां चढ़ती हुई संध्या तेजी से वहीँ आ पहुची । ''''क्या है दीदी?'' ''अरे देख तो आकाश में आज कितने तारे चमक रहें !'' .दीदी के चेहरे पर चमक देखकर संध्या की आँख भर आई पर उसने आंसू छिपाते हुए कहा 'हाँ !दीदी इसे ही शायद ''विभावरी'' की संज्ञा दी जाती है ।'' उषा एकाएक रुआंसी हो आई ''...बब्बू होता तो शायद ताली बजाता होता और ....''यह कहते हुए संध्या के गले लगकर फफक-फफक कर रो पड़ी .संध्या के ह्रदय में भी हूक सी उठी ''......काश बब्बू उस दिन स्कूल न जाता ।'' स्कूल बस व् ट्रक की सीधी टक्कर में कुछ अन्य बच्चों के साथ चार वर्षीय बब्बू भी हादसे का शिकार हो गया था .इस हादसे ने उषा और उसके पति मुकुल के दिल का सुकून व् जीवन के प्रति आस्था को छिन्न-भिन्न कर डाला था .उषा की उदासी देखते हुए ही उसके पिता जी उसे ससुराल से यही घर ले आये थे .संध्या का साथ पा उषा कुछ-कुछ तो अपने गम पर काबू करना सीख गयी थी पर इतना आसान तो नहीं होता जिगर के टुकड़े को भुलाना .उषा की माँ भी उसको देखकर मन ही मन में घुली जाती थी .उषा को समझाते हुए संध्या नीचे ड्राइंग रूम में ले आयी .नीचे आने पर उषा को तबियत ख़राब लगी तो बेडरूम में जाकर सो गयी .माँ,पिता जी व् संध्या चिंतित हो उठे .सुबह तक भी जब उषा का स्वास्थ्य गिरा गिरा रहा तो माँ के कहने पर पिता जी लेडी डॉक्टर को बुला लाये .डॉक्टर ने चेकअप कर मुस्कुराते हुए कहा ''उषा माँ बनने वाली है और आप परेशान हो रहे हैं ? ''उनके यह कहते ही सबकी आँखों में ख़ुशी के आंसू छलक आये .संध्या ने धीरे से उषा के कान में कहा '....लो दीदी फिर से आने वाला है जो तारों भरे आकाश को देखकर ताली बजाएगा !'' उषा ने संध्या को गले से लगा लिया .

मंगलवार, 5 अप्रैल 2011

हाँ शाहिद हम तंगदिल हैं !

हाँ शाहिद हम तंगदि हैं ! 
इसीलिए हम पाकिस्तानियों
की तरह अपनी धरती पर
आतंकवादी तैयार नहीं करते
और न ही कसाब जैसे हैवानों को
भेजते हैं आपके देश में
मासूमों का क़त्ल करने .

हाँ शाहिद हम तंगदिल हैं !
इसीलिए अपने जवान बेटों को
शहीद  करवाकर भी
शुरू कर देते हैं समझौता
एक्सप्रेस और भेजते हैं बुलावा
क्रिकेट मैच देखने का ,
जबकि तुम बड़े दिल वाले
आज तक मुंबई हमले की
अपनी साजिश को स्वीकार नहीं
करते और नकार देते हो
हमारे द्वारा प्रस्तुत हर
सबूत को .

हाँ शाहिद हम तंगदिल हैं
और हमारे राष्ट्र पिता भी
तो तंगदिल थे जिन्होंने
पचपन करोड़ देकर तुम्हारे
राष्ट्र को आर्थिक सुद्रढ़ता  
प्रदान करनी चाही
बदले में तुम बड़े दिल वालों ने
उस पैसे से हथियार जुटा कर
हम पर ही हमला कर डाला .

हाँ शाहिद हम तंगदिल हैं
तुम जैसे बड़े दिल वालों से
लाख गुना बेहतर क्योंकि
हम हिन्दुस्तानी है
केवल हिन्दुस्तानी .

''जय हिंद '

सोमवार, 4 अप्रैल 2011

प्रश्न पूनम पांडे से !

प्रश्न पूनम पांडे से !

कैसी आदिम सोच है तुम्हारी?
किस आधुनिक पीढ़ी का
प्रतिनिधित्व कर रही हो तुम ?
क्या पाना चाहती हो तुम
और कैसे ?
क्या तुम्हारा अनुसरण
कर स्त्री जाति फहरा
पायेगी सशक्तिकरण का झंडा ?
क्या तुम सोचती हो कि
स्त्री के पास अपनी देह के अतिरिक्त
कुछ भी नहीं ?
तुम्हारी मानसिकता इतनी
दिवालिया क्यों हो गयी ?
तुम्हारा नाम तो अमावस्या होना
चाहिए था फिर किसने
''पूनम ''रख दिया ?
तुमने  तो आज  नग्नता 
को  भी शर्मसार   कर दिया !


रविवार, 3 अप्रैल 2011

लघु कथा -दोषी कौन

लघु कथा -दोषी कौन

अस्पताल के बर्नवार्ड में बेड पर अस्सी प्रतिशत जली हुई सुलेखा का अंतिम बयाँ लिया जा रहा था .सुलेखा तड़पते हुए किसी प्रकार बोल रही थी -''मेरी इस दशा के लिए मेरे ससुराल वाले ज्यादा दोषी हैं.या मेरे मायके वाले ....मैं यह नहीं जानती पर जन्म के साथ ही मैं एक लड़की हूँ यह अहसास मुझे कराया जाता रहा .मेरी माँ मुझसे बचपन से ही सावधान करती रहती ''ठीक से काम कर ...कल को अपने घर जाएगी तो मुझे बदनाम करेगी क्या ?''पिताजी कहते ''ठीक चाल-चलन रख वर्ना कैसे ब्याह होगा ?''......विदाई के समय माँ ने कान में धीरे से कहा था -''अब बिटिया वही तेरा घर है ...भागवान औरत वही है जिसकी अर्थी उसके पति के घर से निकले .अब बिटिया हमारी लाज तेरे ही हाथ में है .मायके की लाज को संभाले मैं जब ससुराल पहुंची तो पहले दिन से ही ताने मिलने लगे -''क्या लाई है अपने घर से !एक से एक रिश्ते आ रहे थे हमारी अक्ल पर ही पत्थर पड़े थे जो इसे ब्याह लाये ...''हर त्यौहार पर भाई सिंधारा लाता ...पूछता अच्छी तो है जीजी ?मैं कह देती ''हाँ'' तो पलट कर यह न कहता ''कहाँ जीजी तू तो जल कर कोयला हो गयी है !सच कहूँ माँ -बाप -भाई के इस व्यवहार ने मुझे बहुत दुखी किया .कल जब मेरे पति ने मुझसे कहा की ....जा मेरे घर से निकल जा ...तब एक बार मेरे मन में आया कि क्या यह मेरा घर नहीं !...पर तभी ये विचार भी मेरे मन में आया कि जिस घर में मैं पैदा हुई ,चहकी,महकी ....जब वही घर मेरा नहीं तब ये घर कैसे हो सकता है ?मैं दौड़कर स्टोर रूम में गयी और मिटटी का तेल अपने पर उड़ेल लिया और आग लगा ली .अब आप लोग ही इंसाफ करते रहना कि मेरी इस दुर्दशा के लिए ससुराल वाले ज्यादा दोषी हैं या मायके वाले ....''

बुधवार, 30 मार्च 2011

''सत्यमेव जयते ''

आंसू को तेजाब बना लो
इस दिल को फौलाद बना लो
हाथों को हथियार बना लो
बुद्धि को तलवार बना लो

फिर मेरे संग कदम मिलाकर
प्राणों में तुम आग लगाकर
ललकारों उन मक्कारों को
भारत माँ के गद्दारों को ,

धुल चटा दो इन दुष्टों को
लगे तमाचा इन भ्रष्टों को
इन पर हमला आज बोल दो
इनके सारे राज खोल दो ,

आशाओं के दीप जला दो
मायूसी को दूर भगा दो
सोया मन हुंकार भरे अब
सच की जय-जयकार करें सब ,

झूठे का मुंह कर दो काला
तोड़ो हर शोषण का ताला
हर पापी को कड़ी सजा दो 
कुकर्मों  का इन्हें मजा दो ,

सत्ता मद में जो हैं डूबे
लगे उन्हें जनता के जूतें
जनता भूखी नंगी बैठी
उनकी बन जाती है कोठी ,

आओ इनकी नीव हिला दे
मिटटी में अब इन्हें मिला दे
भोली नहीं रही अब जनता
इतना इनको याद दिला दे ,

हम मांगेंगे अब हक़ अपना
सच कर लेंगे हर एक सपना
आगे बढना है ये कहते
''सत्यमेव जयते -सत्यमेव जयते  ''