फ़ॉलोअर

गुरुवार, 15 मई 2014

पर्दे में घुटती औरत !

पर्दे में घुटती औरत !
पर्दे में रहते हुए
वो घुट रही है ,
मर रहे हैं उसके
चिंतनशील अंतर्मन
 के विचार,
 और सिमट रहे हैं
अभिलाषाओं के फूल ,
जो कभी खिले थे
ह्रदय के उपवन में ,
कि दे पाऊँगी
इस विश्व को नूतन कुछ
और हो जाउंगी
मरकर भी अमर !!

शिखा कौशिक 'नूतन'

कोई टिप्पणी नहीं: