जीवन में ह्रदय के उदगार विभिन्न रूप में प्रकट होते हैं.कभी कहानी कभी कविता से भरा ये ब्लॉग.....
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गुरुवार, 15 मई 2014
पर्दे में घुटती औरत !
पर्दे में घुटती औरत !
पर्दे में रहते हुए
वो घुट रही है ,
मर रहे हैं उसके
चिंतनशील अंतर्मन
के विचार,
और सिमट रहे हैं
अभिलाषाओं के फूल ,
जो कभी खिले थे
ह्रदय के उपवन में ,
कि दे पाऊँगी
इस विश्व को नूतन कुछ
और हो जाउंगी
मरकर भी अमर !!
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