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गुरुवार, 17 मई 2012

'श्री राम ने सिया को त्याग दिया ?''-एक भ्रान्ति !






श्री गणेशाय नम: 
''हे गजानन! गणपति ! मुझको यही वरदान दो 
हो सफल मेरा ये कर्म दिव्य मुझको ज्ञान दो 
हे कपिल ! गौरीसुत ! सर्वप्रथम तेरी वंदना 
विघ्नहर्ता विघ्नहर साकार करना कल्पना ''
                     
''''सन्दर्भ  ''''
                                             ॐ नम : शिवाय !
                                            श्री सीतारामचन्द्रभ्याम नम :


'श्री  राम ने सिया को त्याग  दिया  ?''-एक  भ्रान्ति !
  Jai Shri Ram
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  सदैव से इस प्रसंग पर मन में ये विचार  आते रहे हैं कि-क्या आर्य कुल नारी भगवती माता सीता को भी कोई त्याग सकता है ...वो भी नारी सम्मान के रक्षक श्री राम ?मेरे मन में जो विचार आये व् तर्क की कसौटी पर खरे उतरे उन्हें  इस रचना के माध्यम से मैंने प्रकट करने का छोटा सा प्रयास किया है -

हे  प्रिय  ! सुनो  इन  महलो  में
अब और  नहीं  मैं  रह  सकती  ;
महारानी  पद पर रह आसीन  
जन जन का क्षोभ  न  सह  सकती .

एक गुप्तचरी को भेजा था 
वो  समाचार ये लाई है 
''सीता '' स्वीकार   नहीं जन को 
घर रावण  के रह  आई   है .

जन जन का मत  स्पष्ट  है ये 
चहुँ और हो  रही  चर्चा है ;
सुनकर ह्रदय छलनी होता है 
पर सत्य तो सत्य होता है .

मर्यादा जिसने लांघी  है 
महारानी कैसे हो सकती ?
फिर जहाँ उपस्थित  प्रजा न हो 
क्या अग्नि परीक्षा हो सकती ?

हे प्रभु ! प्रजा के इस  मत ने 
मुझको भावुक  कर  डाला है ;
मैं आहत हूँ ;अति विचलित हूँ 
मुश्किल से मन  संभाला है .

पर प्रजातंत्र में प्रभु मेरे
 हम प्रजा के सेवक  होते  हैं ;
प्रजा हित में प्राण त्याग की 
शपथ भी तो हम लेते हैं .

महारानी पद से मुक्त करें 
हे प्रभु ! आपसे विनती है ;
हो मर्यादा के प्रहरी तुम 
मेरी होती कहाँ गिनती है ?

अश्रुमय  नयनों  से  प्रभु  ने 
तब सीता-वदन  निहारा था ;
था विद्रोही भाव युक्त 
जो मुख सुकोमल प्यारा था . 

गंभीर स्वर में कहा प्रभु ने 
'सीते !हमको सब ज्ञात है 
पर तुम हो शुद्ध ह्रदय नारी 
निर्मल तुम्हारा गात है .

ये  भूल  प्रिया  कैसे  तुमको 
बिन अपराध करू दण्डित ?
मैं राजा हूँ पर पति भी हूँ 
सोचो तुम ही क्षण भर किंचित . 

राजा के रूप में न्याय करू 
तब भी तुम पर आक्षेप नहीं ;
एक पति रूप में विश्वास मुझे 
निर्णय का मेरे संक्षेप यही .

सीता ने देखा प्रभु अधीर 
कोई त्रुटि नहीं ये कर बैठें ;
''राजा का धर्म एक और भी है ''
बोली सीता सीधे सीधे .

'हे प्रभु !मेरे जिस क्षण तुमने 
राजा का पद स्वीकार था ;
पुत्र-पति का धर्म भूल 
प्रजा -हित लक्ष्य तुम्हारा था .

मेरे कारण विचलित न हो 
न निंदा के ही पात्र बनें ;
है धर्म 'लोकरंजन 'इस क्षण 
तत्काल इसे अब पूर्ण करें .

महारानी के साथ साथ 
मैं आर्य कुल की नारी हूँ ;
इस प्रसंग से आहत हूँ 
क्या अपनाम की मैं अधिकारी हूँ ?

प्रमाणित कुछ नहीं करना है 
अध्याय सिया का बंद करें ;
प्रभु ! राजसिंहासन उसका है 
जिसको प्रजा स्वयं पसंद करे .

है विश्वास अटल मुझ पर '
हे प्रिय आपकी बड़ी दया  ;
ये कहकर राम के चरणों में 
सीता ने अपना शीश धरा .

होकर विह्वल श्री राम झुके 
सीता को तुरंत  उठाया था ;
है कठोर ये राज-धर्म जो 
क्रूर घड़ी ये लाया था .

सीता को लाकर ह्रदय समीप 
श्री राम दृढ   हो ये बोले;
है प्रेम शाश्वत प्रिया हमें 
भला कौन तराजू ये तोले ? 

मैंने नारी सम्मान हित 
रावण कुल का संहार किया  ;
कैसे सह सकता हूँ बोलो 
अपमानित हो मेरी प्राणप्रिया ?

दृढ निश्चय कर राज धर्म का 
पालन आज मैं करता हूँ ;
हे प्राणप्रिया !हो ह्रदयहीन  
तेरी इच्छा पूरी  करता हूँ .

होकर करबद्ध सिया ने तब 
श्रीराम को मौन प्रणाम किया ;
सब सुख-समृद्धि त्याग सिया ने 
नारी गरिमा को मान दिया .

मध्यरात्रि  लखन   के  संग 
त्याग अयोध्या गयी सिया ;
प्रजा में भ्रान्ति ये  फ़ैल गयी 
''श्री राम ने सिया को त्याग दिया ''!!! 
                                            शिखा कौशिक 
                                              [विख्यात }


मंगलवार, 15 मई 2012

सिर या पूंछ ..भाई की ऊँची मूंछ !


सिर या पूंछ  ..भाई की ऊँची  मूंछ  !
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भाई   ने  देखा  
बहन  खिड़की  पर  खड़ी थी  ;
गरजते  हुए  बोला  -
''शर्म  नहीं आती ?''
चलो हटो  यहाँ  से  ...
ये  अच्छी  लड़कियों  
का चाल -चलन  नहीं होता ''.

बहन तुरंत  हट  गयी  ;
बहन को लगा उससे बहुत  
बड़ी गलती हो गयी  ,
बहन के हटते  ही भाई 
खुद  खड़ा  होकर   देखने  
लगा आने जाने  वाली  लड़कियों को 
और इंतजार करने लगा 
सामने के घर की खिड़की के 
खुलने का  ;
क्योंकि  वहां  रहती है 
एक  लड़की ..जिसे  देखकर  
आँखे  सेक  लेता  है भाई ;
उस  लड़की के खिड़की पर आते ही 
लगातार घूरता रहता  है उसे  
लड़की   को नहीं ये पसंद  
इसीलिए शायद रहती है
 वो खिड़की बंद ;

तब  कहता है भाई  -
''ये  लड़की  खिड़की  पर  आती  ही  नहीं  
इस  सामने  वाली  लड़की  में   
भरा  है  बहुत  घमंड  !!!!

                   शिखा कौशिक 

रविवार, 13 मई 2012

मेरी बहन बहन ...तेरी बहन प्रेमिका !!!

मेरी बहन बहन ...तेरी बहन प्रेमिका !!!
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लड़का लड़की ने मिलकर सोचा 
''प्रेम ही सब कुछ  है  ''
हम दोनों  एक  दूजे  के  
बिना   मर   जायेंगे  !
माता  -पिता बहन-भाई 
ये सब क्या खाक साथ निभायेंगें ?
वैसे भी हम अपनी भलाई जानते हैं 
इसीलिए मर्यादा ;नैतिकता;
पारिवारिक नियंत्रण को हम नहीं मानते हैं .
दोनों योजना बनाकर फरार हो गए ;
घरवालों ने मिन्नतें की 
तो लौट आने को तैयार हो गए ,
जिस  दिन दोनों का विवाह हुआ 
एक और हादसा हो गया ;
लड़की का भाई लड़के की बहन 
को लेकर रफूचक्कर हो गया .
जो लड़का खुद किसी और की 
बहन को लेकर भागा था 
आज  उसके सिर शैतान सवार हो गया ;
बोला बदचलन बहन को 
सबक सिखाऊंगा ;
मर्यादा लांघी है परिवार की 
इसका मज़ा चखाऊंगा ,
ढूँढकर  दोनों को ज्यों ही 
रिवाल्वर साले पर तानी 
साले ने भी जेब से पिस्टल निकाली 
बोला -ये बदला है मेरे परिवार की
इज्ज़त  से खेलने का ;
मैंने  भी तुम्हारी इज्ज़त 
मिटटी   में मिला डाली !!!!!

                                           shikha kaushik 
                                            [vikhyat ]

गुरुवार, 10 मई 2012

आज करता है हिंदुस्तान सलाम ![''10 May 1857'' पर विशेष ]


आज करता है हिंदुस्तान  सलाम !


आज ही दिन 1857 में भड़की थी चिंगारी .जिसने दिलाई हमें आज़ादी अंग्रेजों के ज़ालिम राज से 


.स्वाधीनता संग्राम में अपने प्राणों का उत्सर्ग करने वाले सभी शहीदों को नमन -



[''10 May 1857'' पर विशेष ]

SHAHEEDON KO SALAM..MY SONG -MY VOICE 



Shaheedon ko salaam



जो लुटा देते जान अपनी वतन के लिए 
जो बहा देते खून अपना  वतन के लिए 

उन शहीदों को ....खुशनसीबों को 
आज करता है हिंदुस्तान 
सलाम-सलाम-सलाम !


इस धरती के लाल हैं वे 
'भारत माँ के दुलारे '
कौन भुला सकता है उनको 
जगमगाते सितारे 
उन जवानों को 
उन दीवानों को 
आज करता है हिंदुस्तान 
सलाम-सलाम-सलाम .


शत्रु के आगे न झुकते 
बढ़ते कदम नहीं रुकते 
वे रण में पीछे न हटते 
माँ की आन पे मिटते 
उन सपूतों को 
देवदूतों को 
आज करता है हिंदुस्तान  
सलाम- सलाम -सलाम 
                                    शिखा कौशिक 
                               [विख्यात ] 



रविवार, 6 मई 2012

मेरे पापा .. तुम्हारे पापा से भी बढ़कर हैं-a short story


Pretty Cute Girl
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   स्कूल  में  भोजनावकाश  के  समय  कक्षा  पांच  के तीन  विद्यार्थी  राजू ,सोहन व् बंटी ने अपने टिफिन बॉक्स खोले और निवाला  मुंह में रखते हुए राजू बोला-''...पता है सोहन मेरे पापा को  मेरी  बहन बिलकुल पसंद  नहीं .पापा कहते हैं कि यदि उसकी जगह भी मेरे भाई होता तो हमारा  परिवार पूरा हो जाता .कल हम दोनों में लड़ाई हो गयी .मेरी गलती थी ....पर पापा ने मेरी बहन के गाल पर जोरदार  तमाचा लगाते हुए कहा-शर्म नहीं आती अपने भाई से लडती है !''.....सोहन बोला-''मेरे पापा तो तुम्हारे पापा से भी बढ़कर हैं कल माँ से कह रहे थे -''यदि इस  बार लड़की  पैदा  की तो घर   से  निकाल दूंगा तुझे  ..तुम  तो जानते  ही  हो मेरे पहले  से ही  तीन छोटी  बहने    हैं .''.....उन    दोनों की बात  सुनकर  बंटी बोला -''...पर मेरे पापा तुम   दोनों के पापा से बढ़कर हैं .मेरी माँ के पेट     में ही  जुड़वाँ  बहनों  को परसों  ख़त्म  करवाकर  आये  हैं .ये  तो अच्छा  हुआ   कि मैं  लड़का  हूँ  वरना  वे  मुझे  भी जन्म न  लेने   देते   ....''  तभी   भोजनावकाश   की समाप्ति  की घंटी  बजी  और 
तीनों  अपनी  अपनी  सीट   पर जाकर  बैठ   गए  .
                 शिखा कौशिक