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शुक्रवार, 9 दिसंबर 2011

बन गयी दवाओं की गुलाम जिन्दगी






टैबलेट  के हुक्म पर चलती है जिन्दगी 
बन गयी दवाओं की गुलाम जिन्दगी .


सिर में दर्द है तो बाम लगा लो 
नयनों में हो पीड़ा  ये ड्रॉप टपका लो 
गोली के इशारो पर अब नाचे जिन्दगी 
बन गयी ............


पानी  -दूध-फल ताकत  नहीं लाते 
कैप्सूल -सीरप शक्ति हैं बढ़ाते 
कडवी दवाओं ने कर दी कडवी जिन्दगी 
बन गयी दवाओं .........


हर घर में आती है अब रोज़ दवाई 
पानी जैसी बहती मेहनत की कमाई 
लगती अस्पताल सी अब सबकी जिन्दगी 
बन गयी दवाओं ........


जिसने  कारोबार   दवाओं का  कर लिया 
नोटों  से अपना   घर है भर लिया     
कर डाली  दवाओं ने नीलाम  जिन्दगी 
बन गयी ........................
                                       शिखा  कौशिक  
                            [विख्यात ]
                              





4 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

एकदम सटीक ।

सादर

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

बहुत बढ़िया!
सत्यवचन!

सागर ने कहा…

prabhaavshali abhivaykti...

Pallavi saxena ने कहा…

कटु सत्य को दर्शाती रचना समय मिले कभी तो आयेगा मेरे नये ब्लॉग पर भी आपका स्वागत है
http://aapki-pasand.blogspot.com/2011/12/blog-post_08.html