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मंगलवार, 1 फ़रवरी 2011

अमर सुहागन !
हे!  शहीद की प्राणप्रिया
तू ऐसे शोक क्यूँ करती है?
तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दुल्हन मांग को भरती है.
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श्रृंगार नहीं तू कर सकती;
नहीं मेहदी हाथ में रच सकती;
चूड़ी -बिछुआ सब छूट गए;
कजरा-गजरा भी रूठ गए;
ऐसे भावों को मन में भर
क्यों हरदम आँहे भरती है;
तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दीपक में ज्योति जलती है.
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सब सुहाग की रक्षा हित
जब करवा-चोथ  -व्रत करती हैं
ये देख के तेरी आँखों से
आंसू की धारा बहती है;
यूँ आँखों से आंसू न बहा;हर दिल की
धड़कन कहती है--------
जिसका प्रिय हुआ शहीद यंहा
वो ''अमर सुहागन'' रहती है.

8 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…

बहुत बढ़िया लिखा है शिखा जी.

ब्लॉग का यह नया रूप बहुत अच्छा लगा.

Shalini kaushik ने कहा…

बहुत मार्मिकता के साथ प्रस्तुत रचना ...आभार

Anita ने कहा…

सुंदर भावों से भरी मार्मिक कविता !

डॉ. मोनिका शर्मा ने कहा…

तेरे प्रिय के बलिदानों से
हर दुल्हन मांग को भरती है.

सब कुछ बयां करती पंक्तियाँ.....

Anupama Tripathi ने कहा…

बहुत संवेदनशील रचना है -
बधाई

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत भावपूर्ण..मन को छू लेती पंक्तियाँ

-सर्जना शर्मा- ने कहा…

बहुत ही उत्कृष्ट रचना भाव दिल छू लेने वाले हैं ।

दिगम्बर नासवा ने कहा…

सब सुहाग की रक्षा हित
जब करवा-चोथ -व्रत करती हैं
ये देख के तेरी आँखों से
आंसू की धारा बहती है;
यूँ आँखों से आंसू न बहा;हर दिल की
धड़कन कहती है--------
जिसका प्रिय हुआ शहीद यंहा
वो ''अमर सुहागन'' रहती है....

मार्मिक ... बहुत गहरे भाव हैं इस रचना में ... सच है शहीद कभी मरते नहीं ... अमर हो जाते हैं ... और पीछे रह जाने वाली सदा सुहागिन रहती है ...